Secret of Ravana’s Death

The Secret of Ravana’s Death (रावण की मृत्यु का राज़), वैसे तो रामायण की कथा जग प्रसिद्ध हैं और हम सभी ने इसे कई बार देखा और सुना भी होगा। लेकिन बहुत सारी ऐसी अनकही कहानियाँ और संवाद भी हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

और आज की ये कहानी या संवाद भी कुछ ऐसा ही हैं:

ये संवाद उस समय का हैं जब रावण अपनी मृत्यु के निकट थे और किसी भी क्षण उनकी मृत्यु संभव थी।

और मरने से पहले वो प्रभु राम से पुछते हैं कि हे राम, किसी भी क्षण मैं मृत्यु को प्राप्त हो सकता हूँ और मुझे अपनी मृत्यु का का तनिक भी दुःख नहीं, किंतु जिन परिस्थितियों में मैं हारा और मारा गया वो सभी मेरे लिए अनुकूल और तुम्हारे लिए प्रतिकूल थी। 

और रावण आगे कहते हैं कि अगर हम ज्ञान और तप की तुलना की जाए तो मैं विश्व का सबसे बड़ा ज्ञानी और भगवान शंकर का सबसे बड़ा उपासक हूँ। जबकि तुम्हारे न तो ज्ञान का पता हैं और न ही तप का।

अगर हम अपनी सेनाओं की तुलना करें तो मेरी सेना में एक़ से बढ़कर एक भयंकर असुर और राक्षस जबकि तुम्हारी सेना में सिर्फ़ मामूली से ये बंदर और भालू।

और तीसरा अंतर रावण बताते हुए कहते हैं कि बहुत मुश्किल हैं किसी को किसी की मातृभूमि या घर में घुसकर हराना और मेरा दुर्भाग्य ऐसा कि तुम किसी और राज्य से आए और मुझे मेरी ही मातृभूमि पर हरा गए।

ये सारी परिस्थितियाँ मेरे युद्ध जीतने के लिए अनुकूल थी फिर भी मैं हारा, क्यों?

और प्रभु राम इन बातों का जवाब देते हुए कहते हैं।

रावण कदापि तुम सत्य कह रहे हो कि तुम्हारा ज्ञान मेरे ज्ञान से बड़ा, तुम्हारी सेना मेरी सेना से अधिक शक्तिशाली और तुम्हारा वध तुम्हारी ही मातृभूमि पर करना आसान नहीं हैं। 

लेकिन तुम सिर्फ़ इसलिए हारें क्योंकि तुम चरित्र हीन और मैं चरित्रवान।

 

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आपका मित्र

एम॰ के॰ मौर्यावंशी