Guru Ji (गुरू जी) की कहानी:
Guru Ji (गुरू जी) एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही लाखों लोगों के चेहरे उत्साह से भर जाते हैं।
गुरुजी आस्था नहीं लोगों का विश्वास हैं।
हमारी आज की प्रस्तुति गुरुजी और उनके भक्तों को समर्पित हैं।
Guru Ji (गुरू जी) का जन्म:
गुरुजी का जन्म 7-July-1952 को पंजाब के संगरूर ज़िले के डूँगरी गाँव में हुआ था। गुरुजी का वास्तविक नाम निर्मल सिंग़ जी महाराज था। लेकिन वो अपने भक्तों में गुरुजी की उपाधि से ही लोकप्रिय हैं।
गुरुजी बचपन से ही संतो के साथ समय बिताना पसंद करते थे। संत सेवा दास जी जिन्होंने अपने सांसारिक जीवन से सन्यास ले लिया था और जिनके लाखों अनुयायी थे। गुरुजी छोटी उम्र से ही संत सेवा दास जी के डेरे में जाकर बैठे रहते थे, जो कि गुरुजी के घरवालों को पसंद नहीं था। गुरु जी के माता–पिता भी चाहते थे कि गुरुजी अपना ज़्यादा समय अपनी पढ़ाई में दें। कहा जाता हैं संतो के साथ बिताए गए समय की वज़ह से ही अध्यात्म की शक्ति या अध्यात्म के लिए उनका आकर्षण बढ़ा।
Guru Ji (गुरू जी) की पढ़ाईं और शक्तियाँ:
लोगों का मानना हैं कि Guru Ji (गुरुजी) बचपन से ही अपनी शक्तियों को जानते थे और अध्यात्म की तरफ़ वो इतने आकर्षित थे कि जब उनके माता–पिता उन्हें उनके कमरे में पढ़ाई करने के लिए छोड़कर बाहर आ जाते थे और बाद में उन्हें किसी काम से वापस बुलाने के लिए उनके कमरे में जाते थे तब गुरु जी उन्हें अपने कमरे में नहीं मिलते थे बल्कि वो संतो के साथ डेरे में मिलते थे।
उनकी शक्तियों की एक कहानी ये भी हैं कि एक बार स्कूल की परीक्षा में उनके एक मित्र ने अपनी स्याही की ख़ाली दवात दिखाते हुए उनसे स्याही माँगी और गुरुजी ने अपने उस दोस्त की दवात को सिर्फ़ हाथ ही लगाया था और वो दवात स्याही से भर गयी थी।
कहा जाता हैं कि गुरुजी ने अपनी शक्तियों को छिपाकर एक आम आदमीं जैसा ही जीवन जिया। लेकिन कई बार School में वो अपने Teachers को अपनी शक्तियों से ऐसे उलझा देते थे कि कुछ समय के लिए वो अपनी क्लास से ग़ायब हो जाते थे और फ़िर कुछ समय बाद वो टीचर को क्लास में ही बैठे दिखायी देते थे।
माना जाता हैं कि Guru Ji (गुरुजी) इस संसार में सांसारिक पढ़ाई करने नहीं आए थे क्योंकि वो ये सब पहले से ही जानते थे। लेकिन फिर भी उन्होंने Double MA सिर्फ़ अपने माता–पिता की ख़ुशी के लिए किया।
अब तक उनके माता–पिता भी उनकी शक्तियों के बारे में जान गए थे और उनकी माँ भी उनके पैर छूकर उन्हें गुरुजी कहकर ही बुलाती थी। जैसा कि बाक़ी लोग उन्हें बुलाते थे।
अपनी Education के बाद, गुरुजी ने अपना घर छोड़ दिया और कभी वो अपने किसी अनुयायी के घर कुछ समय के लिए रुकते थे तो कभी वो कई दिनों के लिए विलुप्त हो जाते थे। क़ोई नहीं जानता था कि वो कहाँ गए।
Guru Ji (गुरू जी) के मंदिर:
इस बात से क़ोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वो कहाँ हैं लेकिन अपने अनुयायियों और लोगों की समसायाओं या बीमारीयों को अपने आशीर्वाद से दूर करते थे।
गुरुजी अपने लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए जलंधर, चंडीगढ़, पंचकुला, दिल्ली और मुंबई में बहुत समय तक रहे। और फ़िर उन्होंने जलंधर में अपना घर बनाया जिसे आज उनके मंदिर के रूप में जाना जाता है। दिल्ली में MG Road पर उनका एक मंदिर हैं जिसे छोटा मंदिर के नाम से जाना जाता हैं और दिल्ली के की भाटी माइंज़ area में उन्होंने एक शिव मंदिर बनवाया था जिसे बड़े मंदिर के नाम से जाना जाता है।
Guru Ji (गुरू जी) की समाधि:
31-May-2007 में उन्होंने दिल्ली में ही महासमाधि ग्रहण की।
गुरुजी ने अपने छोटे से जीवन काल में ही लाखों लोगों के दिल में अपनी जगह बना ली। जो लोग उनसे नहीं भी मिले, उन लोगों की भी उनमें बहुत आस्था हैं और उनका कहना हैं कि गुरुजी का आशीर्वाद उन पर सदा बना रहता हैं जिसकी वज़ह से उन्हें किसी भी समस्या का सामना करने की हिम्मत मिलती हैं।
लोगों का मानना हैं कि गुरुजी किसी भी इंसान को देखकर उसके जीवन की सारी कहानी समझ जाते हैं और उसके लिए क्या अच्छा हैं वो आशीर्वाद उसे दे देते हैं।
Guru Ji (गुरू जी) और भक्तों के बीच सम्बन्ध:
गुरुजी ने कभी कोई उपदेश नहीं दिया. कभी कोई रस्म निर्धारित नहीं की. फिर भी उनका संदेश भक्त तक कैसे पहुँच जाता था, यह केवल भक्त ही बता सकता है. इस विशेष “सम्बंध” से भक्त को न केवल खुशी और स्फ़ूर्ति मिलती थी, बल्कि इसकी वजह से भक्त में एक गहरा बदलाव भी आता था. भक्त एक ऐसे स्तर पर पहूँच जाता था जहाँ आनंद, तृप्ति और शांति एक साथ आसानी से मिल जाते थे. गुरुजी के चारो ओर दिव्य सुगंध रहती थी, मानों गुलाब के फूल खिले हो. आज भी उनकी खुशबू उनके भक्तों को गूरूजी के होने का अहसास दिलाती है।
माना जाता हैं कि गुरु जी हर उस इंसान की मदद आज भी करते हैं जो उनसे मदद की प्रार्थना करता हैं। लाखों लोगों को उनकी बीमारीयों और उनकी अनेकों समस्याओं में गुरुजी के आशीर्वाद से बहुत मदद मिली हैं।
गुरुजी को इस संसार से गए इतना समय हो गया हैं लेकिन आज भी उनके मंदिर में सत्संग होता हैं और सत्संग के दौरान प्रसाद के रूप में लोगों को चाय बाँटी जाती हैं और सत्संग के अंत में लंगर के रूप में सभी को प्रसाद खिलाया जाता हैं।
बहुत सारे लोगों की बहुत सारी बीमारियाँ सिर्फ़ उनके लंगर को खाने मात्र से ठीक जाती हैं।
गुरु जी इसलिए भी लोगों के दिलों पर राज़ करते हैं क्योंकि उन्होंने अपने अध्यात्म ज्ञान का उतराधिकारी किसी को नहीं बनाया। जैसा बहुत सारे गुरु करते हैं। उनका मानना हैं ज्ञान तपस्या से अर्जित किया जाता हैं अधिकार से नहीं।
वो हमेशा कहते थे कि जो भी उनके मंदिर में प्रवेश करेगा उसे उनका आशीर्वाद ज़रूर मिलेगा और लोगों को इसकी अनुभूति आज भी होती हैं।
जो लोग उनसे नहीं मिले उन पर भी उनका इतना आशीर्वाद हैं तो वो लोग तो भाग्यशाली हैं जिन्होंने उन्हें साक्षात देख़ा हैं।
जय गुरु जी!!!
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एम॰के॰ मौर्यावंशी
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